*-हरिवंशराय बच्चन की* _*एक सुंदर कविता ...👌*_
*खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की।*
*आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।*
*आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।*
*अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे।*
*क्यों की जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।*
*क्यों की जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।*
*ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है*
*शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं....!!*
*शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं....!!*
*एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी,*
*जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं,*
*और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।*
*जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं,*
*और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।*
*बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...*
*क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..*
*क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..*
*मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,*
*चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।*
*चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।*
*ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है*
*जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने*
*न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.*
*न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.*
*एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..*
*वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!*
*वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!*
*सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..*
*पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!*
*पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!*
*सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....*
*बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |*
*बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |*
*जीवन की भाग-दौड़ में क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?*
*हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..*
*हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..*
*एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम*
*_और_*
*आज कई बार*
*बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..*
*बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..*
*कितने दूर निकल गए,*
*रिश्तो को निभाते निभाते..*
*खुद को खो दिया हमने,*
*अपनों को पाते पाते..*
*रिश्तो को निभाते निभाते..*
*खुद को खो दिया हमने,*
*अपनों को पाते पाते..*
*लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,*
*और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..*
*और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..*
*"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,*
*लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..*
*लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..*
*मालूम है कोई मोल नहीं मेरा*
*_फिर भी,_*
*कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ...!*
Brig Narinder Dhand,
http://signals-parivaar.blogspot.in
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