25 Aug 2013 10:00,
2013-08-24T17:17:57+05:30
आज से 25 साल पहले जब कौरव, पांडवों की गाथा पर आधारित सीरियल 'महाभारत' शुरू हुआ तो शायद इसके निर्देशक बीआर
चोपड़ा को भी इल्म नहीं रहा होगा कि आने वाले दिनों में एक इतिहास रचा जाने वाला
है. इससे पहले रामानंद सागर निर्मित 'रामायण' ने भी दूरदर्शन पर अपार सफलता पाई थी.
ऐसे में 'महाभारत' के लिए उतनी लोकप्रियता तक पहुंच पाना
ख़ासा मुश्किल काम था लेकिन 'महाभारत' ने यह काम कर दिखाया. इसका निर्देशन
किया था रवि चोपड़ा ने और संवाद लिखे थे राही मासूम रज़ा ने. (सुनिए: 'युधिष्ठिर' और 'दुर्योधन' की कहानी) कई विशेषज्ञों का मानना है
कि इतना कामयाब टेली सीरियल भारतीय टेलीविज़न इतिहास में कोई नहीं हुआ. इसके पात्र
मानो भारत के हर घर का हिस्सा बन गए. हर रविवार को प्रसारित होने वाले इस
धारावाहिक में दिखाई जाने वाली घटनाओं का ज़िक्र लोगों की चर्चा का विषय बनने लगा.
महाभारत का प्रसारण आज से 25 साल पहले
दूरदर्शन पर शुरू हुआ था.
इसमें काम करने वाले कलाकार रातों-रात शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच गए. हम आपको मिलवा रहे हैं 'महाभारत' के कुछ कलाकारों से, जो बता रहे हैं कि इसमें काम करने के बाद उनके करियर पर क्या असर पड़ा. सीरियल के बाद क्या उनकी किस्मत चमकी या फिर वो दोबारा संघर्ष करने के लिए मजबूर हो गए. इस श्रंखला की पहली कड़ी में जानिए युधिष्ठिर का किरदार निभाने वाले गजेंद्र चौहान और दुर्योधन का किरदार निभाने वाले पुनीत इस्सर की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी. गजेंद्र चौहान (युधिष्ठिर) 'महाभारत' ने मेरे करियर पर इतना गहरा असर डाला कि गजेंद्र चौहान की मेरी असल छवि दबकर रह गई. जहां मैं जाता लोग मुझे युधिष्ठिर नाम से बुलाने लगते. दरअसल लोगों ने इससे पहले यह गाथा सिर्फ सुनी थी. टीवी पर इसे लोगों ने पहली बार देखा तो उन्होंने हर कलाकार के चेहरे को उसके द्वारा निभाए गए किरदार से जोड़ लिया. मैं उनके लिए युधिष्ठिर बन गया. रूपा गांगुली, द्रौपदी और नीतीश भारद्वाज कृष्ण बन गए. 'राम और युधिष्ठिर साथ-साथ' हमें उस दौरान बड़े-बड़े उद्योगपतियों से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक ने खाने पर आमंत्रित किया. एक बार मेरे घर की घंटी बजी. मैंने दरवाज़ा खोला तो एक सज्जन बाहर खड़े थे और रो रहे थे. उन्होंने कहा कि वो कोलकाता से आए हैं और उनके पिता बहुत बीमार हैं. वह एंबुलेंस में मेरे घर के बाहर ही थे. उन सज्जन ने मुझसे उनके पिता के सिर पर हाथ रखने की ग़ुज़ारिश की ताकि वो ठीक हो जाएं. या ठीक ना भी हो पाएं तो उन्हें संतोष रहेगा कि मरने से पहले धर्मराज युधिष्ठिर ने उन्हें स्पर्श किया. मुझे यह बात बड़ी अजीब लगी और थोड़ी झिझक भी हुई लेकिन उनके बार-बार कहने पर मैं मान गया. मैं उनके पिता से मिला और उनके सिर पर हाथ रखा. किस्मत देखिए. कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद वह बिलकुल ठीक भी हो गए और बार-बार मेरा अहसान माना. इसी तरह से एक बार मैं और अरुण गोविल (जिन्होंने रामायण में राम का किरदार निभाया था) चंडीगढ़ एयरपोर्ट में मिले. हम बात कर रहे थे कि हमें अपने पैर के पास कुछ महसूस हुआ. हमने नीचे देखा कि क़रीब 90 वर्ष के एक बुज़ुर्ग अपना एक हाथ मेरे पैरों पर और दूसरा हाथ अरुण गोविल के पैरों पर रखे हुए हैं. हम चौंक गए. उन्हें उठाया और कहा कि यह आप क्या कर रहे हैं. तो वो बोले, "ज़िंदगी में पहली बार श्रीराम और धर्मराज युधिष्ठिर को साथ देख रहा हूं. अब मैं चैन से मर सकूंगा." 'द्रौपदी को दांव पर क्यों लगाया' एक बार मैं और अर्जुन (महाभारत में जो अर्जुन बने थे) दिल्ली के एक रेस्टॉरेंट में नॉन-वेज खाना खाने गए. वहां खाने के बाद जब हम पैसे देने लगे तो रेस्टॉरेंट के मैनेजर ने हाथ जोड़कर पैसे लेने से इनकार कर दिया और बोला, "पहली बार, भगवान मेरे होटल में गोश्त खाने आए. मैं भला उनसे कैसे पैसे ले सकता हूं." एक बार हवाई जहाज़ में एक महिला मुझसे मिली और बोली, "मैं तुम्हें थप्पड़ मारना चाहती हूं. आख़िर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई द्रौपदी को दांव पर लगाने की." संघर्ष 'महाभारत' से मुझे अपार लोकप्रियता मिली लेकिन सीरियल ख़त्म हो जाने के बाद मेरा संघर्ष शुरू हो गया. दरअसल निर्माता दुविधा में थे कि मुझे कैसे रोल दें. युधिष्ठिर का रोल निभाने के बाद सब मुझे कुछ उसी तरह के आदर्श किरदार में देखना चाहते थे लेकिन हर रोल तो वैसा हो नहीं सकता तो मुझे दिक्कत पेश आने लगी. फिर मैंने सोचा ऐसे तो मैं टाइपकास्ट हो जाऊंगा. तो मैंने ख़ुद ही हटकर रोल स्वीकार करने शुरू कर दिए. मैंने जान-बूझकर कुछ नकारात्मक किरदार किए ताकि अपनी युधिष्ठिर की छवि को तोड़ सकूं. उस दौरान मैंने कुछ बी और सी ग्रेड की फ़िल्में भी कीं. एक बार इस संघर्ष का दौर बीत जाने के बाद मुझे रोल लगातार मिलने लगे और आलम ये है कि अब तक मैं कोई 600 धारावाहिकों में काम कर चुका हूं. लेकिन कहना होगा कि इसके लिए सिर्फ 'महाभारत' ज़िम्मेदार है. उसी की वजह से लोग मेरा चेहरा पहचानने लगे. आज मैं जो हूं 'महाभारत' की वजह से हूं. पहले मैं एक संघर्षशील कलाकार था. कलाकार इसके बाद बना. इसने मुझे ही नहीं ज़्यादातर कलाकारों को पैरों पर खड़ा कर दिया. आजकल जो सीरियल टॉप पर हैं उनकी रेटिंग सात या आठ प्रतिशत होती है. 'महाभारत' की टीआरपी 99.6 प्रतिशत होती थी जो आज तक किसी सीरियल की नहीं है. आज भी हम कलाकार जब भी मिलते हैं तो सिर्फ़ 'महाभारत' के दौर की बातें होती हैं. अब ये हमारी ज़िंदगी का अभिन्न अंग बन चुका है. (रेखा ख़ान से बातचीत पर आधारित) पुनीत इस्सर (दुर्योधन) मैं अपने आपको बेहद सौभाग्यशाली समझता हूं कि ऐसी महान कृति में काम करने का मौका मिला. वो संस्कृत में कहते हैं, "ना भूतो ना भविष्यति". ये धारावाहिक भी ऐसे ही हैं. मैं आज जो हूं इसी सीरियल की वजह से हूं. इसके पहले मुझे फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल मिलते थे लेकिन 'महाभारत' ने सारी कहानी बदल दी. मेरा अस्तित्व दुर्योधन की वजह से ही है. साल 1982 में 'कुली' फ़िल्म की दुर्घटना किसे याद नहीं, जब मेरे साथ एक एक्शन दृश्य करते वक़्त सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को चोट लग गई थी. उसके बाद के कुछ साल मेरे लिए बड़े संघर्ष वाले थे. लेकिन 'महाभारत' ने मानो सब कुछ बदलकर रख दिया. इसके बाद मुझे फ़िल्मों में बड़े रोल मिलने लगे. मुख्य खलनायक की भूमिका मिलने लगी. 'गुस्सा थूक दो राजा जी' एक दिलचस्प घटना बताता हूं. 'महाभारत' के क्लाईमेक्स की शूटिंग जयपुर में चल रही थी. लोग दूर से शूटिंग देख रहे थे. कोई मेरे पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. एक बुज़ुर्ग महिला काफी देर बाद हिम्मत जुटाकर मेरे पास आई और बोली, "राजा जी, अब गुस्सा थूक भी दो, दे दो ना पांडवों को पांच गांव." इसी तरह से एक बार हमें एक मारवाड़ी उद्योगपति ने खाने पर आमंत्रित किया. मेरे अगल-बगल में अर्जुन और रूपा गांगुली (द्रौपदी) बैठे हुए थे. घर की महिलाएं आतीं, वो अर्जुन को परोसतीं, फिर रूपा को और मुझे परोसे बिना बढ़ जातीं. मैंने तब घर की बुज़ुर्ग महिला से पूछा, "माताजी, मुझसे कोई ग़लती हुई क्या." तो उन्होंने मुझे झिड़कते हुए कहा, "चुप रहो. तुमने पांडवों के साथ इतना बुरा क्यों किया." ये घटनाएं दर्शाती हैं कि लोग कितनी शिद्दत से इस धारावाहिक का अनुसरण करते थे और हमारे किरदार किस हद तक हमसे जुड़ गए थे.
इसमें काम करने वाले कलाकार रातों-रात शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच गए. हम आपको मिलवा रहे हैं 'महाभारत' के कुछ कलाकारों से, जो बता रहे हैं कि इसमें काम करने के बाद उनके करियर पर क्या असर पड़ा. सीरियल के बाद क्या उनकी किस्मत चमकी या फिर वो दोबारा संघर्ष करने के लिए मजबूर हो गए. इस श्रंखला की पहली कड़ी में जानिए युधिष्ठिर का किरदार निभाने वाले गजेंद्र चौहान और दुर्योधन का किरदार निभाने वाले पुनीत इस्सर की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी. गजेंद्र चौहान (युधिष्ठिर) 'महाभारत' ने मेरे करियर पर इतना गहरा असर डाला कि गजेंद्र चौहान की मेरी असल छवि दबकर रह गई. जहां मैं जाता लोग मुझे युधिष्ठिर नाम से बुलाने लगते. दरअसल लोगों ने इससे पहले यह गाथा सिर्फ सुनी थी. टीवी पर इसे लोगों ने पहली बार देखा तो उन्होंने हर कलाकार के चेहरे को उसके द्वारा निभाए गए किरदार से जोड़ लिया. मैं उनके लिए युधिष्ठिर बन गया. रूपा गांगुली, द्रौपदी और नीतीश भारद्वाज कृष्ण बन गए. 'राम और युधिष्ठिर साथ-साथ' हमें उस दौरान बड़े-बड़े उद्योगपतियों से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक ने खाने पर आमंत्रित किया. एक बार मेरे घर की घंटी बजी. मैंने दरवाज़ा खोला तो एक सज्जन बाहर खड़े थे और रो रहे थे. उन्होंने कहा कि वो कोलकाता से आए हैं और उनके पिता बहुत बीमार हैं. वह एंबुलेंस में मेरे घर के बाहर ही थे. उन सज्जन ने मुझसे उनके पिता के सिर पर हाथ रखने की ग़ुज़ारिश की ताकि वो ठीक हो जाएं. या ठीक ना भी हो पाएं तो उन्हें संतोष रहेगा कि मरने से पहले धर्मराज युधिष्ठिर ने उन्हें स्पर्श किया. मुझे यह बात बड़ी अजीब लगी और थोड़ी झिझक भी हुई लेकिन उनके बार-बार कहने पर मैं मान गया. मैं उनके पिता से मिला और उनके सिर पर हाथ रखा. किस्मत देखिए. कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद वह बिलकुल ठीक भी हो गए और बार-बार मेरा अहसान माना. इसी तरह से एक बार मैं और अरुण गोविल (जिन्होंने रामायण में राम का किरदार निभाया था) चंडीगढ़ एयरपोर्ट में मिले. हम बात कर रहे थे कि हमें अपने पैर के पास कुछ महसूस हुआ. हमने नीचे देखा कि क़रीब 90 वर्ष के एक बुज़ुर्ग अपना एक हाथ मेरे पैरों पर और दूसरा हाथ अरुण गोविल के पैरों पर रखे हुए हैं. हम चौंक गए. उन्हें उठाया और कहा कि यह आप क्या कर रहे हैं. तो वो बोले, "ज़िंदगी में पहली बार श्रीराम और धर्मराज युधिष्ठिर को साथ देख रहा हूं. अब मैं चैन से मर सकूंगा." 'द्रौपदी को दांव पर क्यों लगाया' एक बार मैं और अर्जुन (महाभारत में जो अर्जुन बने थे) दिल्ली के एक रेस्टॉरेंट में नॉन-वेज खाना खाने गए. वहां खाने के बाद जब हम पैसे देने लगे तो रेस्टॉरेंट के मैनेजर ने हाथ जोड़कर पैसे लेने से इनकार कर दिया और बोला, "पहली बार, भगवान मेरे होटल में गोश्त खाने आए. मैं भला उनसे कैसे पैसे ले सकता हूं." एक बार हवाई जहाज़ में एक महिला मुझसे मिली और बोली, "मैं तुम्हें थप्पड़ मारना चाहती हूं. आख़िर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई द्रौपदी को दांव पर लगाने की." संघर्ष 'महाभारत' से मुझे अपार लोकप्रियता मिली लेकिन सीरियल ख़त्म हो जाने के बाद मेरा संघर्ष शुरू हो गया. दरअसल निर्माता दुविधा में थे कि मुझे कैसे रोल दें. युधिष्ठिर का रोल निभाने के बाद सब मुझे कुछ उसी तरह के आदर्श किरदार में देखना चाहते थे लेकिन हर रोल तो वैसा हो नहीं सकता तो मुझे दिक्कत पेश आने लगी. फिर मैंने सोचा ऐसे तो मैं टाइपकास्ट हो जाऊंगा. तो मैंने ख़ुद ही हटकर रोल स्वीकार करने शुरू कर दिए. मैंने जान-बूझकर कुछ नकारात्मक किरदार किए ताकि अपनी युधिष्ठिर की छवि को तोड़ सकूं. उस दौरान मैंने कुछ बी और सी ग्रेड की फ़िल्में भी कीं. एक बार इस संघर्ष का दौर बीत जाने के बाद मुझे रोल लगातार मिलने लगे और आलम ये है कि अब तक मैं कोई 600 धारावाहिकों में काम कर चुका हूं. लेकिन कहना होगा कि इसके लिए सिर्फ 'महाभारत' ज़िम्मेदार है. उसी की वजह से लोग मेरा चेहरा पहचानने लगे. आज मैं जो हूं 'महाभारत' की वजह से हूं. पहले मैं एक संघर्षशील कलाकार था. कलाकार इसके बाद बना. इसने मुझे ही नहीं ज़्यादातर कलाकारों को पैरों पर खड़ा कर दिया. आजकल जो सीरियल टॉप पर हैं उनकी रेटिंग सात या आठ प्रतिशत होती है. 'महाभारत' की टीआरपी 99.6 प्रतिशत होती थी जो आज तक किसी सीरियल की नहीं है. आज भी हम कलाकार जब भी मिलते हैं तो सिर्फ़ 'महाभारत' के दौर की बातें होती हैं. अब ये हमारी ज़िंदगी का अभिन्न अंग बन चुका है. (रेखा ख़ान से बातचीत पर आधारित) पुनीत इस्सर (दुर्योधन) मैं अपने आपको बेहद सौभाग्यशाली समझता हूं कि ऐसी महान कृति में काम करने का मौका मिला. वो संस्कृत में कहते हैं, "ना भूतो ना भविष्यति". ये धारावाहिक भी ऐसे ही हैं. मैं आज जो हूं इसी सीरियल की वजह से हूं. इसके पहले मुझे फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल मिलते थे लेकिन 'महाभारत' ने सारी कहानी बदल दी. मेरा अस्तित्व दुर्योधन की वजह से ही है. साल 1982 में 'कुली' फ़िल्म की दुर्घटना किसे याद नहीं, जब मेरे साथ एक एक्शन दृश्य करते वक़्त सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को चोट लग गई थी. उसके बाद के कुछ साल मेरे लिए बड़े संघर्ष वाले थे. लेकिन 'महाभारत' ने मानो सब कुछ बदलकर रख दिया. इसके बाद मुझे फ़िल्मों में बड़े रोल मिलने लगे. मुख्य खलनायक की भूमिका मिलने लगी. 'गुस्सा थूक दो राजा जी' एक दिलचस्प घटना बताता हूं. 'महाभारत' के क्लाईमेक्स की शूटिंग जयपुर में चल रही थी. लोग दूर से शूटिंग देख रहे थे. कोई मेरे पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. एक बुज़ुर्ग महिला काफी देर बाद हिम्मत जुटाकर मेरे पास आई और बोली, "राजा जी, अब गुस्सा थूक भी दो, दे दो ना पांडवों को पांच गांव." इसी तरह से एक बार हमें एक मारवाड़ी उद्योगपति ने खाने पर आमंत्रित किया. मेरे अगल-बगल में अर्जुन और रूपा गांगुली (द्रौपदी) बैठे हुए थे. घर की महिलाएं आतीं, वो अर्जुन को परोसतीं, फिर रूपा को और मुझे परोसे बिना बढ़ जातीं. मैंने तब घर की बुज़ुर्ग महिला से पूछा, "माताजी, मुझसे कोई ग़लती हुई क्या." तो उन्होंने मुझे झिड़कते हुए कहा, "चुप रहो. तुमने पांडवों के साथ इतना बुरा क्यों किया." ये घटनाएं दर्शाती हैं कि लोग कितनी शिद्दत से इस धारावाहिक का अनुसरण करते थे और हमारे किरदार किस हद तक हमसे जुड़ गए थे.
(मधु पाल से
बातचीत पर आधारित)
(नोट: हमारी
इस विशेष पेशकश में हम आपको महाभारत के और भी कलाकारों के अनुभव से रूबरू कराएंगे)
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर
पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
'महाभारत' के 25 साल
26 Aug 2013 02:00,
2013-08-26T13:20:29+05:30 मशहूर
टीवी सीरियल महाभारत का दूरदर्शन पर प्रसारण आज से 25 साल पहले साल 1988 में शुरू हुआ. बी आर चोपड़ा के इस
धारावाहिक ने लोकप्रियता के कई नए रिकॉर्ड बनाए. इसका निर्देशन किया था रवि चोपड़ा
ने और संवाद लिखे थे मशहूर संवाद लेखक दिवंगत राही मासूम रज़ा ने. लेकिन इस
धारावाहिक के ख़त्म होने के बाद क्या हुआ ? कैसी रही इसमें काम करने वाले कलाकारों
की ज़िंदगी ? पेश है एक ख़ास रिपोर्ट.
'शकुनि!
मैं तेरी दूसरी टांग भी तोड़ दूंगा'
27 Aug 2013 08:40,
2013-08-26T19:23:46+05:30 'महाभारत' का प्रसारण 25 साल पहले दूरदर्शन पर शुरू हुआ था. इस
पर बीबीसी की ख़ास पेशकश के पहले हिस्से में हमने आपको बताया था कि युधिष्ठिर का
किरदार निभाने वाले गजेंद्र चौहान और दुर्योधन का किरदार निभाने वाले पुनीत इस्सर
की ज़िंदगी में महाभारत के बाद क्या बदलाव आए. (युधिष्ठिर और दुर्योधन की कहानी)
इस शृंखला की दूसरी और आख़िरी कड़ी में जानिए भीष्म पितामह का किरदार निभाने वाले
मुकेश खन्ना , शकुनि का किरदार निभाने वाले गूफ़ी
पेंटल और गांधारी का किरदार निभाने वाली रेणुका इसरानी की दास्तां उन्हीं के
शब्दों में. मुकेश खन्ना (भीष्म पितामह) मैंने सुना है कि टीवी पर दोबारा एक नया 'महाभारत' लाने की तैयारी है. मैं कहता हूं कि 25 साल पहले जो 'महाभारत' बन गया वैसा तो अब बन ही नहीं सकता.
मैं ख़ुद भी चाहूं तो दोबारा भीष्म पितामह नहीं बन सकता. आज से चंद बरस पहले एकता
कपूर भी जब अपना 'महाभारत' टीवी पर लाई थीं तो मैंने कहा था कि वो
पुरानी बात नहीं आ पाएगी. एकता कपूर ने नाराज़ होकर कहा था कि मुकेश खन्ना ने बिना
मेरे सीरियल का एक भी फ़्रेम देखे
ये बात कैसे कह दी. मैं आपको बताऊं कि 'महाभारत' से पहले मैंने क़रीब 15 फ़िल्में की थीं. कई डिब्बा बंद हो गईं और
जो रिलीज़ हुईं वो सब फ़्लॉप हो गईं. लेकिन 'महाभारत' ने जैसे क़िस्मत ही पलट दी. लोगों ने कहा, भैया कहां थे तुम. मैंने कहा, बस यहीं था. आप लोगों की नज़रें नहीं पड़ीं. 'अर्जुन बनना चाहता था' मैं महाभारत में अर्जुन या कर्ण का किरदार निभाना
चाहता था. फिर मुझे दुर्योधन का किरदार ऑफ़र हुआ, लेकिन मैंने साफ़ मना कर दिया. सबने कहा कि मैं
पागलपन कर रहा हूं, क्योंकि दुर्योधन
का किरदार काफ़ी वज़नदार था. लेकिन मैंने कहा कि मैं निगेटिव रोल कर ही नहीं सकता.
तब मुझे द्रोणाचार्य का किरदार मिला जो मैंने स्वीकार भी कर लिया. लेकिन मेरी
क़िस्मत में तो 'आयुष्मान भव:' कहना लिखा था. भीष्म पितामह का रोल विजेंद्र
घाटगे को दिया गया. लेकिन शायद उन्हें सफ़ेद दाढ़ी लगाना गवारा नहीं था. वो नहीं
आए. तब मुझे इस रोल को करने का सौभाग्य मिला और मैं इस बात को अपनी ख़ुशनसीबी
मानता हूं. ऐतिहासिक कामयाबी 'महाभारत' को लोगों का अपार प्यार मिला. ऐसी कामयाबी आज तक
किसी भी टीवी कार्यक्रम को नहीं मिली. लोग मज़ाक में कहते थे कि कोई दुश्मन देश
भारत पर 'महाभारत' के प्रसारण के वक़्त हमला कर दे तो जीत जाएगा
क्योंकि उस वक़्त पूरा देश और सुरक्षा बल भी सीरियल देख रहे होते. नुक़सान वैसे तो
मुझे 'महाभारत' करने के 90 फ़ीसदी फ़ायदे हुए लेकिन कुछ नुक़सान भी
हुए. भीष्म पितामह का किरदार निभाने के बाद मुझे ज़्यादातर बुज़ुर्ग किरदारों के
रोल मिलने लगे. मुझे शाहरुख़ ख़ान, अक्षय कुमार
से लेकर बॉबी देओल तक के पिता के रोल मिलने लगे. हद तो तब हो गई जब फ़िल्म 'यलग़ार' में मैंने
फ़िरोज़ ख़ान साहब के पिता का रोल निभाया. लोग हंसते जब स्क्रीन पर ख़ान साहब मुझे
डैड, डैड कह कर बुलाते. लेकिन इन चंद बातों को
छोड़ दिया जाए तो महाभारत मेरे लिए मील का पत्थर साबित हुआ. (रेखा ख़ान से बातचीत
पर आधारित) गूफ़ी पेंटल (शकुनि) 'महाभारत' जैसे रोल तो कहते हैं ना कि ज़िंदगी में एक बार
ही मिलते हैं. मैं इस महाकाव्य का हिस्सा बनने पर गर्व महसूस करता हूं. मुझे हर
जगह प्रशंसकों का भरपूर प्यार मिलता है. लोग मुझसे नफ़रत भी करते हैं और आशीर्वाद
भी लेते हैं. मुझे आज भी लोग शकुनि मामा कहते हैं. मैंने शकुनि का रोल निभाने के
अलावा 'महाभारत' के लिए कास्टिंग डायरेक्टर और प्रोडक्शन डिज़ाइनर
की ज़िम्मेदारी निभाई. 'महाभारत' शुरू होने से पहले रामायण के रूप में बेहद
लोकप्रिय कार्यक्रम आ चुका था. ऐसे में उसके जैसी कामयाबी पाना बेहद मुश्किल माना
जा रहा था. लेकिन 'महाभारत' का प्रसारण शुरू होने के एक हफ़्ते बाद जो टीआरपी
आई उसमें कमाल हो गया. 'महाभारत' ने नए रिकॉर्ड बनाए. उसके बाद तो जैसे कामयाबी और
लोकप्रियता का नित नया इतिहास रचा जाने लगा. 'टांग तोड़ दूंगा' मैं आपको एक मज़ेदार वाक़या बताता हूं. आपको पता
ही होगा कि शकुनि का मेरा किरदार लंगड़ा कर चलता था. जब 'महाभारत' का प्रसारण चल रहा था तो उस वक़्त मुझे रोज़ाना
प्रशंसकों से हज़ारों चिट्ठियां मिलती थीं. ऐसे ही मुझे एक सज्जन की चिट्ठी मिली
जिसमें उन्होंने लिखा था, "ओए शकुनि!
तूने बड़ा ख़राब काम किया. पांडवों और कौरवों के बीच फूट डाली. जुआ करवाया.
द्रौपदी का चीरहरण भी करवाया. यहां तक कि हमारे श्रीकृष्ण भगवान की बात भी नहीं
मानी और युद्ध करवा दिया. अगर अगले एपिसोड तक युद्ध बंद नहीं हुआ तो तेरी दूसरी
टांग भी तोड़ दूंगा." पारिवारिक माहौल 'महाभारत' की शूटिंग के दौरान कलाकारों के बीच काफ़ी
दोस्ताना रिश्ता क़ायम हो गया. हमारे परिवारों के बीच भी दोस्ती हो गई. हम
छुट्टियों पर पिकनिक मनाने जाते. कई सालों तक दीवाली और होली हम साथ मनाते.
हालांकि समय के साथ अब मिलना-जुलना काफ़ी कम हो गया है लेकिन हमारे बीच दोस्ती
क़ायम है. (मधु पाल से बातचीत पर आधारित) रेणुका इसरानी (गांधारी) 'महाभारत' से पहले मैं 'हम लोग' जैसा लोकप्रिय
सीरियल कर चुकी थी. लेकिन गांधारी के किरदार ने मुझे सच्चे मायनों में लोगों के
घर-घर तक पहुंचा दिया सेट पर उन दिनों ज़ोरदार माहौल हुआ करता था. इतनी दिलचस्प
बातें हुईं कि आज भी याद करके भावुक हो जाती हूं. निर्देशक रवि चोपड़ा हम सब कलाकारों
का बेहद ध्यान रखते थे. बस मुझे एक बात का अफ़सोस है कि उऩ दिनों मैं बेहद युवा थी
लेकिन मुझे गांधारी का बुज़ुर्ग किरदार दिया गया. मुझे लगता कि मैं लोगों को कैसे
समझाऊं कि अभी मैं जवान हूं क्योंकि लोग तो मेरा वही किरदार देखकर मुझे बुज़ुर्ग
समझते. लेकिन मैं कहूंगी कि मुझे कभी भी रोल्स की कमी नहीं रही. 'महाभारत' मेरे करियर का वो अविस्मरणीय अध्याय है जिसे मैं
भूलूंगी नहीं. मैं हमेशा बीआर चोपड़ा और रवि चोपड़ा की ऋणी रहूंगी. (रेखा ख़ान से
बातचीत पर आधारित) (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें
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